एजुकेशन डेस्क, अमित कुमार निरंजन, नई दिल्ली. सम्यक जैन ने दिल्ली में मजदूरों के साथ काम किया। पत्थर उठाए और उनके साथ रहे। लेकिन ये कोई मजदूर नहीं, बल्कि आईआईटी के छात्र हैं। ये आईआईटी दिल्ली के कोर्स इन्क्लूसिव इनोवेशन का हिस्सा रहे हैं। यहां ये कोर्स पांच साल से चल रहा है। इस कोर्स के फैक्ल्टी प्रोफेसर पीवी मधुसूदन राव बताते हैं कि इसका उद्देश्य ऐसे इनोवेशन करना है, जो जरूरतमंदों के काम आए। अब तक इस कोर्स को करीब 200 छात्र कर चुके हैं। इन्हें कहा जा रहा है कि वे इनोवेशन के लिए लैब और कैंपस से बाहर जाएं। कुछ वक्त झुग्गी में रहने वालों के बीच रहें। रिक्शेवालों और मजूदरों की तरह जिंदगी जिएं। खेत से लेकर मंडी तक किसानों के साथ जाएं।
इस तरह के इनोवेशन हुए अब तक, एमआईटी ने लिया इनका प्रोटोटाइप
रिक्शेवालों के लिए
छात्रों ने रिक्शे पर इनके जैसे सोकर जानने की कोशिश की- कि ऐसा क्या किया जाए जिससे इन्हें रिक्शे पर आराम मिल जाए और सवारी भी बैठा सकें। उन्होंने रिक्शे की सीट और मॉडल में थोड़ा बदलाव किया। जिससे रिक्शेवाले आराम करते समय शरीर को सीधा भी कर सकते हैं और सवारी को बैठा भी सकते हैं।
मजदूरों के लिए
दिल्ली की 5 कंस्ट्रक्शन साइट पर छात्रों ने कुछ हफ्तेबिताए थे। वहां मजदूरों से बात की, उनका काम करने का तरीका समझा। समस्या मिली कि कोई भारी चीज हाथ से उठाने और सर या कंधे पर रखने से उन्हें कमर दर्द की समस्या होती है। छात्रों ने एक ऐसा छोटा और सस्ता उपकरण का प्रोटो टाइप बनाया, जिसमें मजदूर बगैर झुके सामान उठा पाए। इस प्रोटोटाइप को अमेरिका की प्रतिष्ठित एमआईटी यूनिवर्सिटी ने भी लिया है।
किसानों के लिए
आईआईटी के छात्रों ने राजस्थान के लहसुन के किसानों के साथ काम किया। वे खेत से लेकर मंडी तक किसानों के साथ गए। देखा कि जितने दाम में किसान लहुसन बिचौलिए को देता है, उससे करीब 80 प्रतिशत ज्यादा दाम पर बिचौलिया ग्राहकों को बेचता है। बिचौलिया डिमांड और सप्लाई के हिसाब से माल बाजार में बेचता था। क्योंकि उसके पास कूलिंग और स्टोरेज की सुविधा थी। छात्रों ने ऐसा बिजनेस इनोवेशन मॉडल डेवलप किया था जिसमें किसान समूह बनाकर स्टोरेज बना सकें।
हर साल 40 छात्र तीसरे या चौथे वर्ष में यह कोर्स करते हैं
राव बताते हैं कि इस प्रक्रिया का परिणाम ये है कि गरीब व मजदूर तबके से संबंधित 50 से ज्यादा इनोवेशन पिछले पांच साल में यहां हो चुके हैं। यही नहीं इस कोर्स को लेने वाले करीब एक चौथाई छात्र कॉर्पोरेट कंपनी केप्लेसमेंट में हिस्सा लेने की बजाय उन संस्थाओं से जुड़े जो सामाजिक क्षेत्र में काम कर रही हैं। या इस तरह के इनोवेशन की इन्हें जरूरत है। हर साल 40 छात्र तीसरे या चौथे वर्ष में यह कोर्स करते हैं। यह छह माह का वैकल्पिक कोर्स होता है। राव बताते हैं कि शुरुआती दिनों में बच्चे शारीरिक अक्षम लोगों से बात कर, इंटरनेट पर रिसर्च कर इनोवेशन कर रहे थे। लेकिन कुछ अलग नहीं मिल रहा था। लगातार बातचीत करने से ये निकला कि नए सोशल इनोवेशन आइडिया के लिए लैब से बाहर निकलना होगा। कैंपस से कुछ समय के लिए दूर रहना होगा। उन लोगों के बीच रहा जाए, जो आर्थिक और शारीरिक रूप से कमजोर हैं। इस प्रक्रिया को अपनाने का परिणाम भी बेहतर निकला। राव बताते हैं कि देश का इकलौता ऐसा कोर्स है जहां जरूरतमंदों की समस्याओं को समझने के लिए उनके बीच रहने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। राव बताते हैं कि अभी यह कोर्स छह माह का है। इसलिए इस कोर्स की अवधि बढ़ाकर एक साल करने पर विचार किया जा रहा है। इस कोर्स में सामाजिक विज्ञान की भी पढ़ाई होती है, ताकि छात्र समाज और मानवीय व्यवहार को समझ कर इनोवेशन कर सकें।